Monday, March 29, 2010

आईटीबीपी में क्षेत्रवाद का आरोप, डीजी कराएंगें जांच

भारत तिब्बत सीमा पुलिस 40 बटालियन सी कंपनी में कार्यरत एक बदमिजाज कार्यवाहक सेनानी के उपर क्षेत्रवाद फैलाने और अपने सिपाहियों के साथ गाली-गलौज कर मारपीट किये जाने का आरोप लगा है। बताया जाता है कि बिहार प्रदेश कांग्रेस किसान सेल के उपाध्यक्ष अजीत कुमार पांडेय ने भारत तिब्बत सीमा पुलिस 40 बटालियन सी कंपनी के कार्यवाहक सेनानी विक्रांत थपरियाल के ऊपर गंभीर आरोप लगाते हुए महानिदेशक [डीजी-आईटीबीपी] भारत तिब्बत सीमा पुलिस से इस मामले की जांच किये जाने की मांग की थी, जिसके आलोक में डीजी-आईटीबीपी ने संज्ञान लेते हुए विक्रांत थपरियाल पर जांच बिठाया है।
उल्लेखनीय है कि नीरज कुमार पाण्डेय, जो भारत तिब्बत सीमा पुलिस में 40 बटालियन सी कंपनी में सिपाही के पद पर तैनात है। पिछले साल जून 2009 में उसकी तबियत खराब हो गई। चिकित्सीय जांच में टी.बी. प्रमाणित हुआ, जिसके उपरांत नीरज कुमार पाण्डेय आवेदन देने के बाद छुट्टी पर चला गया। उसके छुट्टी पर जाने के बाद पुर्वाग्रह से ग्रसित 40 बटालियन सी कंपनी के कार्यवाहक सेनानी विक्रांत थपरियाल उसे लगातार पत्र भेजकर मानसिक रूप से प्रताडि़त करता रहा। जबकि उसे लगातार चिकित्सा प्रमाण पत्र भेजा जाता रहा, बावजूद उसका प्रताड़ना जारी रहा। नीरज कुमार पाण्डेय ने पुन: 18 मार्च को कंपनी में ड्यूटी ज्वाइन कर लिया। साक्षात्कार के समय जब वह कंपनी के कार्यवाहक सेनानी विक्रांत थपरियाल के समक्ष प्रस्तुत हुआ तो बेअंदाज थपरियाल ने उसे अश्लील व क्षेत्रवादी गाली देते हुए काफी मारा-पीटा, जो खुलेआम मानवाधिकार का उलंघन था। इसके पहले भी विक्रांत थपरियाल के ऊपर कई गंभीर आरोप लग चुके है।
बताया जाता है कि भारत तिब्बत सीमा पुलिस के कार्यवाहक सेनानी विक्रांत थपरियाल बिहार व यूपी के सिपाहियों से पूर्वाग्रह रखता है, जिस के कारण वह अक्सर उस क्षेत्र के सिपाहियों के साथ बदतमीजी से पेश आता है व बेवजह उन्हे तंग करता रहता है।
इस संबंध में बिहार प्रदेश कांग्रेस किसान सेल के उपाध्यक्ष अजीत कुमार पांडेय ने बताया कि इस मामले को वे गृहमंत्रालय, मानवाधिकार आयोग और आईटीबीपी के डीजी तक से मिल चुके है। सभी ने उन्हे उचित कार्रवाई का आश्वासन दिया है।

Monday, February 1, 2010

'इब्ने बतूता ताs ताs बगल में जूता..ता..ता..पहने तो करता है चुर्र।


'इब्ने बतूता ताs ताs बगल में जूता..ता..ता..पहने तो करता है चुर्र। र्र..र्र.' शुक्रवार के रिलीज हुई फिल्म 'इश्किया' का यह गीत सचमुच मुझे बहुत दिलचस्प लगा। साढ़े चार मिनट की गुलजार की इस ताजा रचना को संगीत दिया है विशाल भारद्वाज ने और गाया है मिकी व सुखविंदर सिंह ने। सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की एक व्यंग्य कविता में भी इब्ने बतूता है। उनका जूता है, लेकिन इस गीत में गुल़जार साहब कुछ दूसरी बात कह रहे हैं। बगल में जूता संभाले जिंदगी के सफर पर चलने को तैयार रहो। यहां चुर्र।र्र.र्र चलने का मजा है और फुर्र आसमान की मंजिल॥भाई मतलब लाजवाब है। आज फिल्म देखने के बाद मेरे एक दोस्त ने पूछा इब्ने बतूता का मतलब क्या है?
प्रोड्यूसर विशाल भारद्वाज, रमन मारू और डायरेक्टर अभिषेक चौबे की फिल्म की शुरुआत में ही रास्ते और मील के पत्थर ऩजर आते हैं। इन्हीं पत्थरों पर फिल्म के टाइटिल्स दिये गये हैं। फिल्म जिंदगी को एक सफर की तरह देखती-दिखाती है। इस गीत में बोल भी हैं। 'ऐ. ऐ. जिंदगी क्या ढोलक है, दोनों तरफ से बजती है ये..' इस सफर में खुशियां हैं तो मुश्किलें भी कम नहीं। गुल़जार साहब ऐसे शब्दों-मुहावरों में नये मीनिंग भर देते हैं, जो आमतौर पर कविता के लायक नहीं समझे जाते। सफर और इब्ने बतूता एक-दूसरे के पर्यायवाची है। इब्ने बतूता मोरक्को का एक ट्रैवलर था, जिनका जन्म क्फ्0ब् हुआ और वहीं क्फ्म्8 में वे सुपुर्दे खाक हुए। आधी जिंदगी यात्रायें करते हुए ही बितायी। मक्का, ईरान, बगदाद, यमन, सुमात्रा, चीन, दक्षिणी रूस, ईस्ट अफ्रीका, ब्लैक सी के किनारे बसे देश। अफगानिस्तान होते हुए वे सिंधु घाटी पहुंचे। क्फ्फ्फ्-क्फ्ब्ख् में वह हिंदुस्तान में रहे। यहां के बादशाह मुहम्मद तुगलक ने उन्हें काजी बना दिया। वैसे वह थे भी काजियों के खानदान से और इस्लामिक लॉ की पढ़ाई भी उन्होंने की थी, तो इब्ने बतूता न्याय के भी पर्याय हो सकते हैं। फिल्म तथा इस गीत के तीनों मुख्य किरदार खालू जान (नसीरूद्दीन शाह), बब्बन हुसैन (अरशद वारसी) और कृष्णा वर्मा (विद्या बालन) अपराध और न्याय के बीच जूझ रहे हैं। फिल्म के अंत में भी इब्ने बतूता का उल्लेख है और वे तीनों इब्ने बतूता की तरह जीवन की गुत्थियां सुलझाते हैं। पूरा गाना मस्ती में डूबा है। रंग-बिरंगी झंडियों से सजे गोरखपुर के एक ढाबे जैसे सेट पर तीनों सब कुछ भूलकर नाचते फुदकते हैं '..हो अगले मोड़ पर मौत खड़ी है..अरे मरने की भी क्या जल्दी है..' लव बनाम सेक्स का एक दूसरा द्वंद इस एडल्ट फिल्म में दिखाया गया है, उसने इसे कथित बोल्डनेस भी दी है। अभिषेक चौबे खुश हैं कि गंदी गालियों से भरपुर उनकी पहली फिल्म पर सेंसर की कैंची नहीं चली। हांलाकि इससे इतर गुल़जार के गीतों की रूमानियत और सहज फलसफाना अंदा़ज ज्यादा रिलीफ देता है। -'दिल तो बच्चा है जी, थोड़ा कच्चा है जी.'

Tuesday, January 26, 2010

सभी देशवासियों को ६१ वे गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं।

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां हमाराहम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसतां हमारा
गुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन मेंसमझो वहीं हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा
परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ कावो संतरी हमारा, वो पासवां हमारा
गोदी में खेलती हैं, जिसकी हज़ारों नदियाँगुलशन है जिसके दम से, रश्क-ए-जिनां हमारा
ऐ आब-ए-रौंद-ए-गंगा! वो दिन है याद तुझकोउतरा तेरे किनारे, जब कारवां हमारा
मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखनाहिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दोस्तां हमारा
यूनान, मिस्र, रोमां, सब मिट गए जहाँ से ।अब तक मगर है बाकी, नाम-ओ-निशां हमारा
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारीसदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-जहाँ हमारा
'इक़बाल' कोई मरहूम, अपना नहीं जहाँ मेंमालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहां हमारा
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां हमाराहम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसतां हमारा

सभी देशवासियों को ६१ वे गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं। जय हिंद!