Sunday, September 27, 2009

हार्ट अटैक का कारण कोलेस्ट्राल का बढ़ना ....बचाव के उपाय

हाल के वर्षो में देश में दिल के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी है। ज्यादातर इसके लिए बदलती जीवनशैली और खानपान की गलत आदतें जिम्मेदार होती हैं। आमतौर पर हृदय की बीमारियों और हार्ट अटैक का कारण कोलेस्ट्राल का बढ़ना होता है। जब रक्त में कोलेस्ट्राल की मात्रा बढ़ जाती है तो यह रक्त कोशिकाओं में जमकर हृदय की बीमारियों को आमंत्रित करती है।
क्या है कोलेस्ट्राल - कोलेस्ट्राल एक तरह का वसा होता है जिसे लिपिड कहते हैं। शरीर इसका नई कोशिकाओं के निर्माण के लिए इस्तेमाल करता है। लिवर भी कोलेस्ट्राल बनाता है। इसके अलावा हमारा खानपान भी इसके लिए जिम्मेदार होता है। शरीर को कुछ कोलेस्ट्राल की जरूरत होती है। लेकिन यह जरूरत से ज्यादा हो जाए तो धमनियों में जम जाता है। हृदय से शुद्ध खून धमनियों के माध्यम से शरीर के भिन्न हिस्से तक पहुंचता है। लेकिन यह प्रक्रिया धीरे-धीरे बाधित होने लगती है और आगे चलकर हार्ट अटैक का कारण बन जाती है।
क्या हैं लक्षण- उच्च कोलेस्ट्राल होने पर बीमार होने का एहसास नहीं होता। लेकिन यही अगर धमनियों में बनने लगे तो दिल और दिमाग तक खून के प्रवाह को पहुंचने से रोकता है। इससे हार्ट अटैक का खतरा काफी बढ़ जाता है। कोलेस्ट्राल खून और उससे जुड़े प्रोटीन के माध्यम से शरीर में पहुंचता है। प्रोटीन और लिपिड को संयुक्त रूप से लिपोप्रोटींस कहते हैं। यह प्रोटीन या वसा की मात्रा के अनुपात के मुताबिक उच्च या निम्न घनत्व वाले होते हैं।

लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन (एलडीएल) : इन्हें खराब कोलेस्ट्राल कहा जाता है। इसमें वसा ज्यादा और प्रोटीन बहुत कम होता है। यह धमनियों को अवरूद्ध कर देता हैं।

हाई डेंसिटी लिपोप्रोटीन (एचडीएल) : इन्हें अच्छा कोलेस्ट्राल कहा जाता है। इसमें वसा के मुकाबले प्रोटीन ज्यादा पाया जाता है। यह खून से खराब कोलेस्ट्राल को बाहर निकालने में मदद करता है। यह हार्ट अटैक का खतरा घटाता है।

ट्राइग्लिसराइड्स : खून में पाया जाने वाला एक तरह का वसा है। यह सेहत के लिए हानिकारक होता है।कैसे बनता है ट्राइग्लिसराइड्स खानपान : खाने में संतृप्त वसा, ट्रांस वसा और कोलेस्ट्राल इसके बढ़ने के लिए जिम्मेदार होते हैं। यह मीट, दूध, अंडे की जर्दी, मक्खन, चीज, रेडीमेड खाने और स्नैक आदि में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
वजन : वजन बढ़ने से ट्राईग्लिसराइड्स और एचडीएल घट जाता है। धू्रमपान से एचडीएल कम होने की संभावना बढ़ जाती है।

कम सक्रियता : नियमित व्यायाम न करने से भी एलडीएल बढ़ता है और एचडीएल कम होने का खतरा रहता है। आमतौर पर उम्र बढ़ने के साथ एलडीएल बढ़ने का खतरा भी बढ़ जाता है। पुरुषों में ज्यादातर 40 के बाद बढ़ता है। जबकि महिलाओं में रजोनिवृत्ति तक कम रहता है उसके बाद यह पुरुषों के स्तर के बराबर बढ़ता है।
परिवार : कई परिवार में यह बीमारी अनुवांशिक होती है। यदि ऐसा है तो इसका इलाज युवावस्था में शुरू कर देना चाहिए।

बचाव के उपाय : -जीवनशैली में बदलाव और दवाओं के इस्तेमाल से इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। एलडीएल के कम होने से हार्ट अटैक का खतरा भी घट जाता है।-संतृप्त वसा और ट्रांस एसिड वाले खानपान को कम खाएं। यह मक्खन और मिठाई में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। कोशिश करें कि भोजन में फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ ज्यादा से ज्यादा हो।

-वजन को घटा कर भी इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। इससे ब्लड प्रेशर भी काबू में रहता है।

-नियमित रूप से व्यायाम करें। इससे एचडीएल बढ़ता है। यह दिल के लिए फायदेमंद है और वजन को बढ़ने से रोकता है।

-डाक्टर की सलाह लेकर दवाओं का इस्तेमाल करें।

-खाने में लहसुन, सोयाबीन, जौ का आटा, मक्का आदि शामिल करें। खूब फल और सब्जियां खाएं।

-प्रतिदिन एक से दो लीटर पानी जरूर पिएं।-खाने में नमक की मात्रा को कम करें। इससे ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।

-अगर आप धू्रमपान करते हैं तो इसे बंद कर दें। इससे एचडीएल को बढ़ाने में मदद मिलेगी। स्मोकिंग दिल के लिए काफी घातक होती है।

Monday, September 14, 2009

आखिर एक दिन तो पत्नियों के नाम होना ही चाहिए


पति, पत्नी को जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए माना जाता है और कहा जाता है कि एक पहिए पर गाड़ी नहीं चलती। लेकिन जीवन के हर मोड़ पर बराबरी से साथ देने वाली ''बेटर हाफ'' को सराहना कभी कभार ही मिल पाती है और उसके काम को उसके दायित्व की संज्ञा दे दी जाती है।मेरा मानना है कि अगर हम अपनी जीवनसाथी की थोड़ी सी सराहना कर दे तो उसका उत्साह दोगुना हो जाएगा। लेकिन समस्या वही है हमारी मानसिकता। जब तक हमारी मानसिकता नहीं बदलेगी, सराहना के शब्द पत्नियों को मिलने मुश्किल हैं। कई पतियों को पत्नियों का काम नजर ही नहीं आता, वे उनकी सराहना कैसे करेंगे।''अमेरिका में 16 सितंबर को ''वाइफ एप्रीसिएशन डे'' मनाया जाता है। हमारे यहां भी इसकी शुरूआत होनी चाहिए। यह अच्छी बात है। कहीं न कहीं इससे परिवार की नींव मजबूत होगी। आखिर एक दिन तो पत्नियों के नाम होना ही चाहिए। पतियों के लिए वह सब कुछ करती हैं तो एक दिन उनके काम को महत्व देने के लिए तय करना चाहिए। वैसे भी अक्सर कहा जाता है कि पुरूष की सफलता के पीछे महिला का हाथ होता है।
महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा ''माई एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रुथ'' में अपनी पत्नी कस्तूरबा की सराहना करने में कोई कमी नहीं की है। बा और बापू ने 60 साल से भी अधिक समय एक दूसरे के साथ बिताया था। बापू मानते थे कि उनके जीवन के हर मोड़ पर बा ने स्वच्च्छा से उनका पूरा साथ दिया था। जब बा ने अंतिम सांस ली तब बापू ने व्यथित हो कर कहा था ''बा के बिना जीवन की मैं कल्पना भी नहीं कर सकता।'' अहिंसा के इस पुजारी ने अपनी आत्मकथा में माना है कि सत्याग्रह की कला और विज्ञान उन्होंने कस्तूरबा से ही सीखा। उन्होंने लिखा है कि बा का जीवन प्रेम, समर्पण, और बलिदान का पर्याय था। बा कभी भी बापू और उनके सिद्धांतों के बीच नहीं आई। ''स्लमडॉग मिलिनेयर'' फिल्म के लिए आस्कर पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले भारतीय संगीतकार ए आर रहमान कई बार अपने मौजूदा मुकाम के लिए अपनी पत्नी सायरा बानो के योगदान का जिक्र कर चुके हैं। उनकी पत्नी मीडिया के सामने गिने चुने मौकों पर ही आई हैं।''पत्नी की तारीफ करने के लिए बड़ा दिल बहुत ही कम पतियों के पास होता है। ज्यादातर तो अहम ही आड़े आता है। ''मुझे लगता है कि पत्नियां पतियों से सराहना की अपेक्षा भी नहीं रखतीं। वे अपने काम को अपना दायित्व मानती हैं और पतियों को भी लगता है कि दायित्व की सराहना क्यों की जाए।'' इतिहास देखें तो दायित्वों के निर्वाह में महिलाएं कभी पीछे नहीं रहीं। आजादी की लड़ाई में पतियों के साथ पत्नियों ने भी भाग लिया। लेकिन बात एक ही जगह ठहर जाती है और वह है ''पुरूष प्रधान समाज'' की। यहां महिलाओं को सराहना मिलना दूर की कौड़ी है। (कंचन लता)

Sunday, September 13, 2009

क्या यही है हमारी की संवेदनशीलता?


देश की राजधानी दिल्ली में सरेआम ट्रैफिक रेड लाइट पर एक युवक चलती कार से महिला को घसीट कर बाहर कर देता है और फिर कार लेकर फरार हो जाता है। वजह सिर्फ इतनी सी कि वह महिला छेड़खानी पर अपना विरोध दर्ज कराती है जिस पर वह युवक भड़क जाता है। यूं तो यह देश के अन्य शहरों में महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा की तुलना में कोई बहुत बड़ी नजर नहीं आती लेकिन इसका मैग्नीट्यूड तब ज्यादा हो जाता है जब इसका संबंध, दिल्ली और वह भी रेड लाइट जहां पुलिस के अलावा सैकड़ों लोग हर वक्त मौजूद रहते हैं, से हो। इतने लोगों की मौजूदगी के बावजूद महिला की मदद के लिए कोई नहीं आया। महिला की बेटी अपनी मां को बचाने के लिए चिल्लाती रही।

क्या यही है हमारी की संवेदनशीलता? दुनिया भर में अपनी तत्परता का डंका पीटने वाली पुलिस आखिर क्या कर रही थी? क्या वहां मौजूद लोगों में से किसी को अपनी जिम्मेदारी का एहसास नहीं था? या सबको 'कौन पचड़े में पड़े' सिंड्रोम ने जकड़ रखा था। यह वह सिंड्रोम है जो हमारी तमाम समस्याओं की जड़ है। इसी की वजह से लोग सड़क पर तड़पते किसी घायल को अस्पताल तक पहुंचाने की जहमत नहीं उठाते, न ही आस-पड़ोस की किसी समस्या को तवज्जो देते हैं। शहरियों में यह सिंड्रोम कुछ ज्यादा की कारगर होता है। अगर दस लोगों ने सिर्फ तेज आवाज में बोल ही दिया होता तो शायद उस शोहदे को कुछ सबक ज़रूर मिला होता लेकिन जो हुआ वह तो उसका हौसला और बढ़ाने वाला है। आगे वह ऐसी हरकत दोहराने से कतई नहीं हिचकिचाएगा। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए अगर हम पुलिस को केवल जिम्मेदार मान लें तो कोई सॉल्यूशन नहीं निकलेग। इसके लिए शहरियों को खुद आगे आकर हौसला दिखाना होगा।

Saturday, September 12, 2009

क्रिएशन से शुरू हुआ टोरंटो फिल्म फेस्टिवल


पिछले तीन दशक से प्रतिष्ठित टोरंटो फिल्म फेस्टिवल की शुरुआत कनाडा की किसी फिल्म से होती आ रही है। लेकिन इस बार आयोजकों ने कई दशक पुरानी परंपरा को बदलते हुए एक ब्रिटिश फिल्म को मौका दिया। ब्रिटेन की बहुचर्चित फिल्म 'क्रिएशन' के प्रदर्शन से इस समारोह की रंगारंग शुरुआत हुई। फिल्म को इस साल आस्कर पुरस्कार का प्रमुख दावेदार माना जा रहा है। 'क्रिएशन' महान वैज्ञानिक चा‌र्ल्स डार्विन के जीवन और उनकी विश्व विख्यात कृति 'आन द ओरिजिन आफ स्पीशीज' से संबंधित है। समारोह के सह-निदेशक कैमरून बेली ने बताया 'हालांकि फिल्म की विषय वस्तु क्भ्0 साल पुरानी है। लेकिन इसकी प्रासंगिकता आज भी बरकरार है।' उल्लेखनीय है कि डार्विन के नेचुरल सेलेक्शन के सिद्धांत ने मानव विकास की गुत्थी सुलझाई थी। इस फिल्म में दिखाया गया है कि मानव का विकास चरणबद्ध ढंग से हुआ। चा‌र्ल्स डार्विन इस सिद्धांत को खारिज करते हैं कि मानव की सृष्टि ईश्र्वर ने की है। फिल्म में पाल बेटेनी ने डार्विन की भूमिका निभाई है। इस किताब को लिखने से पहले डार्विन ने समुद्र के रास्ते पूरी दुनिया का भ्रमण किया और अपने तर्क को साबित करने के लिए तथ्य जुटाए। डार्विन ने अपने प्रयास और तर्को से ईश्वर के अस्तित्व को ही चुनौती दे दी। इस वजह से उन्हें काफी आलोचना भी सहनी पड़ी। यहां तक की उनकी पत्नी भी उनकी विरोधी हो गई।