Sunday, September 13, 2009

क्या यही है हमारी की संवेदनशीलता?


देश की राजधानी दिल्ली में सरेआम ट्रैफिक रेड लाइट पर एक युवक चलती कार से महिला को घसीट कर बाहर कर देता है और फिर कार लेकर फरार हो जाता है। वजह सिर्फ इतनी सी कि वह महिला छेड़खानी पर अपना विरोध दर्ज कराती है जिस पर वह युवक भड़क जाता है। यूं तो यह देश के अन्य शहरों में महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा की तुलना में कोई बहुत बड़ी नजर नहीं आती लेकिन इसका मैग्नीट्यूड तब ज्यादा हो जाता है जब इसका संबंध, दिल्ली और वह भी रेड लाइट जहां पुलिस के अलावा सैकड़ों लोग हर वक्त मौजूद रहते हैं, से हो। इतने लोगों की मौजूदगी के बावजूद महिला की मदद के लिए कोई नहीं आया। महिला की बेटी अपनी मां को बचाने के लिए चिल्लाती रही।

क्या यही है हमारी की संवेदनशीलता? दुनिया भर में अपनी तत्परता का डंका पीटने वाली पुलिस आखिर क्या कर रही थी? क्या वहां मौजूद लोगों में से किसी को अपनी जिम्मेदारी का एहसास नहीं था? या सबको 'कौन पचड़े में पड़े' सिंड्रोम ने जकड़ रखा था। यह वह सिंड्रोम है जो हमारी तमाम समस्याओं की जड़ है। इसी की वजह से लोग सड़क पर तड़पते किसी घायल को अस्पताल तक पहुंचाने की जहमत नहीं उठाते, न ही आस-पड़ोस की किसी समस्या को तवज्जो देते हैं। शहरियों में यह सिंड्रोम कुछ ज्यादा की कारगर होता है। अगर दस लोगों ने सिर्फ तेज आवाज में बोल ही दिया होता तो शायद उस शोहदे को कुछ सबक ज़रूर मिला होता लेकिन जो हुआ वह तो उसका हौसला और बढ़ाने वाला है। आगे वह ऐसी हरकत दोहराने से कतई नहीं हिचकिचाएगा। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए अगर हम पुलिस को केवल जिम्मेदार मान लें तो कोई सॉल्यूशन नहीं निकलेग। इसके लिए शहरियों को खुद आगे आकर हौसला दिखाना होगा।

2 comments:

  1. ये हमारे देश का दुर्भाग्य है .....

    अच्छा लिखा है.. लिखते रहे

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  2. सबको 'कौन पचड़े में पड़े' सिंड्रोम ने जकड़ रखा है...


    अफसोसजनक/ दुखद.

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