Monday, September 14, 2009

आखिर एक दिन तो पत्नियों के नाम होना ही चाहिए


पति, पत्नी को जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए माना जाता है और कहा जाता है कि एक पहिए पर गाड़ी नहीं चलती। लेकिन जीवन के हर मोड़ पर बराबरी से साथ देने वाली ''बेटर हाफ'' को सराहना कभी कभार ही मिल पाती है और उसके काम को उसके दायित्व की संज्ञा दे दी जाती है।मेरा मानना है कि अगर हम अपनी जीवनसाथी की थोड़ी सी सराहना कर दे तो उसका उत्साह दोगुना हो जाएगा। लेकिन समस्या वही है हमारी मानसिकता। जब तक हमारी मानसिकता नहीं बदलेगी, सराहना के शब्द पत्नियों को मिलने मुश्किल हैं। कई पतियों को पत्नियों का काम नजर ही नहीं आता, वे उनकी सराहना कैसे करेंगे।''अमेरिका में 16 सितंबर को ''वाइफ एप्रीसिएशन डे'' मनाया जाता है। हमारे यहां भी इसकी शुरूआत होनी चाहिए। यह अच्छी बात है। कहीं न कहीं इससे परिवार की नींव मजबूत होगी। आखिर एक दिन तो पत्नियों के नाम होना ही चाहिए। पतियों के लिए वह सब कुछ करती हैं तो एक दिन उनके काम को महत्व देने के लिए तय करना चाहिए। वैसे भी अक्सर कहा जाता है कि पुरूष की सफलता के पीछे महिला का हाथ होता है।
महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा ''माई एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रुथ'' में अपनी पत्नी कस्तूरबा की सराहना करने में कोई कमी नहीं की है। बा और बापू ने 60 साल से भी अधिक समय एक दूसरे के साथ बिताया था। बापू मानते थे कि उनके जीवन के हर मोड़ पर बा ने स्वच्च्छा से उनका पूरा साथ दिया था। जब बा ने अंतिम सांस ली तब बापू ने व्यथित हो कर कहा था ''बा के बिना जीवन की मैं कल्पना भी नहीं कर सकता।'' अहिंसा के इस पुजारी ने अपनी आत्मकथा में माना है कि सत्याग्रह की कला और विज्ञान उन्होंने कस्तूरबा से ही सीखा। उन्होंने लिखा है कि बा का जीवन प्रेम, समर्पण, और बलिदान का पर्याय था। बा कभी भी बापू और उनके सिद्धांतों के बीच नहीं आई। ''स्लमडॉग मिलिनेयर'' फिल्म के लिए आस्कर पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले भारतीय संगीतकार ए आर रहमान कई बार अपने मौजूदा मुकाम के लिए अपनी पत्नी सायरा बानो के योगदान का जिक्र कर चुके हैं। उनकी पत्नी मीडिया के सामने गिने चुने मौकों पर ही आई हैं।''पत्नी की तारीफ करने के लिए बड़ा दिल बहुत ही कम पतियों के पास होता है। ज्यादातर तो अहम ही आड़े आता है। ''मुझे लगता है कि पत्नियां पतियों से सराहना की अपेक्षा भी नहीं रखतीं। वे अपने काम को अपना दायित्व मानती हैं और पतियों को भी लगता है कि दायित्व की सराहना क्यों की जाए।'' इतिहास देखें तो दायित्वों के निर्वाह में महिलाएं कभी पीछे नहीं रहीं। आजादी की लड़ाई में पतियों के साथ पत्नियों ने भी भाग लिया। लेकिन बात एक ही जगह ठहर जाती है और वह है ''पुरूष प्रधान समाज'' की। यहां महिलाओं को सराहना मिलना दूर की कौड़ी है। (कंचन लता)

10 comments:

  1. bilkul sahi farmaya aapne
    patniyo ke lia ek din ka khas samman
    hona hi chahia.

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  2. सही लिखा है आपने शुक्रिया

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  3. बिलकुल सही लिखा है शुभकामनायें

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  4. hadd hai yaar....
    PTI ki khabar ko hi apni POST banakar chep diya aapne!!!!!!!!!!

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  5. सराहना के शब्दों से अब काम नही चलने वाला, साथ खड़े होकर काम कराइए तभी बात बने।यह आउट डेटिड तरीका हो चला कि सराहना दे दो और काम करवाते जाओ

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  6. एक दिन पत्नि के लिए और एक दिन वो के लिए... कैसा रहेगा:)

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  7. बिल्कुल एक दिन तो होना ही चाहिये...

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  8. sirf sarahana se kaam nahi chalta.
    agar sach koi banda ye samjata hai ki uski patni uske life k liye best hai to sirf EK DIN HI KYU WO V SIRF SARAHANA K....jindagi bhar ke liye kyu nahi....?
    FIR V KISI NE TO ISKI SURUAAT KI ..ISKE LIYE AAPKO HARDIK SUBHKAMNAYE N BAHOT BAHOT DHANYAWAD SAVI PATNIYO K TARAF SE...

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